अजमेर: विश्व विख्यात ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह परिसर में संकट मोचन महादेव मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। यानी अब इस मामले में कोर्ट आगे भी सुनवाई करेगी।

कोर्ट ने इस याचिका को सुनवाई के योग्य माना है। बता दें, इस याचिका को हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा दायर किया गया था. अब इस वाद पर बुधवार (27 नवंबर) न्यायालय श्रीमान न्यायिक एवम सिविल न्यायाधीश संख्या दो के जज मनमोहन चंदेल ने प्रतिवादी को नोटिस जारी किये है।

वादी दिल्ली के रहने वाले हिंदू राष्ट्र सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अधिवक्ता ईश्वर सिंह और रामस्वरूप विश्नोई के द्वारा दरगाह कमेटी के कथित अनाधिकृत कब्जा हटाने संबंधी वाद दो महीने पहले याचिका दायर की थी।

वादी पक्ष की ओर से कमियों को किया गया था पूरा

वादी की और से कभी क्षेत्राधिकार तो कभी इंग्लिश की जगह हिंदी में वाद दायर को लेकर अदालत की चैक रिपोर्ट में आपत्तियां आ चुकीं थी। पिछली पेशी में वादी हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की ओर से अंग्रेजी में मूल वाद प्रस्तुत करने पर दावे का हिंदी में रूपांतरण प्रस्तुत करने को कहा गया था। साथ ही अदालत ने केस से संबंधित दस्तावेज मय शपथ पत्र मांगे थे। जबकि प्रतिवादी को जारी करने वाले नोटिस प्रपत्र भी भरकर देने के आदेश दिए थे। वादी पक्ष की ओर से इन कमियों को पूरा कर दिया गया था।

कोर्ट ने प्रतिवादी को नोटिस जारी की

इससे पहले पेशी पर प्रकरण अतिरिक्त न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत से वापस लेकर सक्षम अदालत सिविल न्यायाधीश (कखं) पश्चिम में पेश किया गया। हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दिल्ली के वकील शशि रंजन सिंह के जरिए अजमेर की सीजेएम कोर्ट में 25 सितबर को दायर किया था। यहां से प्रकरण वाद एसीजेएम की अदालत में ट्रांसफर किए जाने पर क्षेत्राधिकार का मु्ददा आने पर वादी ने सेशन न्यायाधीश की अदालत में अर्जी दायर की थी। जिसे खारिज करते हुए उसे सक्षम अदालत में वाद प्रस्तुत करने को स्वतंत्र किया था। आज इस मामले में महत्वपूर्ण फैसला माननीय न्यायाधीश मनमोहन चंदेल ने फेशला सुनाते हुए प्रतिवादी को नोटिस जारी किए गए।

याचिका में किताब के हवाले से दावा

याचिका में दावा किया गया था कि दरगाह की जमीन पर पूर्व में भगवान शिव का मंदिर था। वहां पूजा पाठ और जलाभिषेक किया जाता रहा है। दरगाह परिसर में एक जैन मंदिर होने का भी दावा किया गया. याचिका में अजमेर के रहने वाले हरविलास शारदा द्वारा 1911 में लिखी गई एक पुस्तक का हवाला दिया गया। इसके आधार पर दरगाह की जगह मंदिर होने के प्रमाण का उल्लेख किया गया जिनमें दावा किया गया है कि, दरगाह परिसर में मौजूद 75 फीट के बुलंद दरवाजे के निर्माण में मंदिर के मलवे के अंश हैं. साथ ही वहां एक तहखाना या गर्भ गृह होने की भी बात की गई और कहा गया है कि वहां शिवलिंग था, जहां ब्राह्मण परिवार पूजा अर्चना करते थे।

प्रतिवादी को नोटिस जारी करने के यह रहे प्रमुख कारण

वादी के अधिवक्ता ने बताया कि 38 पेज के दायर वाद में 38 पॉइंट में दिए गए अन्य प्वाइंट्स को ध्यान में रखते हुए. जिसमें प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर उनका पक्ष सुना जायेगा. न्यायालय से वादी द्वारा प्रस्तुत वाद में सात बिंदुओं पर उक्तवाद को चलाने हेतु प्रार्थना की है. जिसकी सुनवाई कर माननीय सिविल न्यायाधीश द्वारा सभी प्रतिवादियों जिसमें दरगाह कमेटी ,अल्पसंख्यक मामलात ,कार्यालय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण धरोहरभवन नई दिल्ली को नोटिस जारी कर आगामी सुनवाई हेतु तारीख दी गई. वहीआर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट से सर्वे किया जा सकता है।

ज्ञानवापी की तरह 1991 पूजा स्थल अधिनियम कानून नहीं होगा लागू

वादी विष्णु गुप्ता ने बताया कि 1991 पूजा स्थल एक्ट यहां इसलिए लागू नहीं होता. क्योंकि पूर्व में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के अंदर कभी किसी इंसान को पूजा करने के लिए अंदर जाने ही नहीं दिया. इसीलिए यह एक्ट यहां लागू नहीं हो सकता.

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