*उपभोक्ता आयोग ने सेवा में कमी के लिए वित्तीय कंपनी पर लगाया जुर्माना
रायसेन । जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग ने एक ऐतिहासिक फैसले में महिंद्रा एंड महिंद्रा फाइनेंस कंपनी को सेवा में कमी के लिए दोषी ठहराते हुए जुर्माना लगाया। आयोग ने आवेदक रविंद्र सिंह ठाकुर की शिकायत को आंशिक रूप से स्वीकारते हुए वित्तीय कंपनी को निर्देश दिए कि वह ऋण संबंधी विवाद का निस्तारण तय समय सीमा के भीतर करे और अतिरिक्त राशि वसूली के मामले में आवेदक को क्षतिपूर्ति प्रदान करे।
मामला: समय पूर्व भुगतान में उत्पन्न विवाद
आवेदक रविंद्र सिंह ठाकुर ने अपनी बेटी अनुराधा सिंह के विवाह के लिए एक ईऑन कार खरीदने हेतु अनावेदक कंपनी से ₹3,00,000 का ऋण लिया था। मासिक किस्तों के रूप में आवेदक ने समय पर भुगतान किया, लेकिन शेष चार किस्तों का समय पूर्व निपटान करने के लिए उन्होंने 21 सितंबर 2018 को संपर्क किया। उस समय, कंपनी ने अतिरिक्त 2.5% ब्याज जोड़ते हुए ₹69,886 एकमुश्त भुगतान की मांग की।
आवेदक ने यह राशि देने की तैयारी दिखाते हुए कंपनी से भुगतान किया, लेकिन कंपनी ने ₹75,500 की मांग करते हुए राशि स्वीकार करने से इनकार कर दिया। आवेदक का दावा था कि इस प्रक्रिया में उन्हें मानसिक कष्ट और आर्थिक हानि झेलनी पड़ी।
आयोग का फैसला: कंपनी की सेवा में कमी प्रमाणित
आयोग अध्यक्ष राजेश कुमार कोष्टा और सदस्य अरुण प्रताप सिंह चंदेल ने मामले की सुनवाई की और प्रस्तुत दस्तावेजों का अवलोकन करने के बाद यह पाया कि:
1. आवेदक ने समय पर किस्तें भरी थीं, और कंपनी द्वारा विलंब शुल्क या अतिरिक्त ब्याज के तर्क अस्वीकार्य हैं।
2. कंपनी को आवेदक से 21 सितंबर 2018 की स्थिति में एकमुश्त राशि स्वीकार करनी चाहिए थी।
3. कंपनी ने आवेदक को सही ब्याज दर और शेष राशि की जानकारी प्रदान नहीं की, जिससे सेवा में कमी प्रमाणित होती है।
आदेश: क्षतिपूर्ति और जुर्माने का प्रावधान
आयोग ने अपने आदेश में निम्न निर्देश दिए:
1. अनावेदक कंपनी दो महीने के भीतर आवेदक से 21 सितंबर 2018 की स्थिति के अनुसार बकाया ऋण राशि स्वीकार करे और एनओसी प्रदान करे।
2. यदि इस अवधि में कार्रवाई नहीं होती, तो कंपनी को हर दिन ₹100 का जुर्माना अदा करना होगा।
3. मानसिक और आर्थिक क्षति के लिए आवेदक को ₹10,000 का मुआवजा और ₹2,000 मुकदमा खर्च दिया जाए।आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि 21 सितंबर 2018 के बाद कंपनी आवेदक से कोई अतिरिक्त ब्याज वसूल नहीं कर सकेगी।
यह मामला उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा और वित्तीय संस्थानों की जवाबदेही सुनिश्चित करने में एक मिसाल है। यह फैसला न केवल उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करता है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि सेवा में कमी करने वाले संस्थानों को जवाबदेह ठहराया जाएगा।